दंगों में अपनों को खोने के बाद अब अपनों की मैयत पाने के लिए भी लगा रहे हैं चक्कर

उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों में अपनों को गंवा चुके अपनी मय्यत पाने के लिए भी लगा रहे हैं कोर्ट के चक्कर, दंगों का दर्द कितना बेदर्द है 17 वर्षीय आमीन पुत्र शहाबुद्दीन अपने चाचा के पास हाथरस से मुस्तफाबाद में आ रहा था जो हाथरस के पिछोती गांव का रहने वाला था। अलीगढ़ में उसके भाई का रिश्ता हुआ था जहां वह अपने होने वाली भाभी के यहां गया और फिर वहां से 25 फरवरी 2020 को मुस्तफाबाद बताकर दिल्ली आ गया ।जब वह मुस्तफाबाद दिल्ली में अपने चाचा के यहां नहीं पहुंचा तो उसके घर वालों को चिंता हुई और उसे जगह जगह ढूंढा । किसी बाबा ने बताया कि वह राजस्थान में है उसके घर वाले उसे राजस्थान भी ढूंढने गए और इस तरह से उसकी तलाश में लगे रहे ।दिल्ली में हाई कोर्ट के किसी वकील के द्वारा एक लाश का फोटो व्हाट्सएप पर भेजा गया उसकी पहचान के आधार पर दिल्ली के जीटीबी में मृतकों के परिजनों ने अपने बेटे की पहचान कपड़ों के आधार पर की ।


आमीन ने जो कपड़े पहन रखे थे  ऊनी कपड़ों में वह कुछ दिन पूर्व एक शादी में गया जहां का डांस का एक वीडियो  उन्हें मिला उस वीडियो को लेकर भाइयों के पास आए उम्र तक के कपड़े और वीडियो के कपड़े दोनों दिखाएं  लेकिन इसके आधार पर भी आई ओ ने  मृतक का शव देने से इनकार कर दिया। पहचान हुई और बताया कि यह किसी हिंदू की डेड बॉडी है ।मृतकों के परिजन जहां राम मनोहर लोहिया अस्पताल से डेड बॉडी बरामद हुई थी वहां पर गए और वहां के डॉक्टरों से पूछा क्या आपके द्वारा इस तरह की कोई पहचान बताई गई है। तो डॉक्टरों ने इस तरह की कोई भी पहचान बताने से इंकार कर दिया और पोस्टमार्टम करने की बात बताइ। मामले को लेकर मृतकों के परिजन कोर्ट में गए और उसके उसके आधार पर अब डीएनए के लिए मामला भेज दिया गया है और डीएनए की रिपोर्ट 30 मार्च तक आने की संभावना है। तो अपनों को खोने का दर्द और फिर अपनों को पाने का दर्द किस तरह से दंगों का दर्द बन गया लोगों की जिंदगी के लिए अजाब।